बादलों का मौसम और वो सुरभीनी शाम - विनय उपाध्याय

 

बादलों का मौसम और वो सुरभीनी शाम

विनय उपाध्याय 



ये भादों की भीगी-सी शाम थी. पानीदार बादलों से आच्छादित आसमान पर जब यकायक इंद्रधनुष खिल उठा तो जैसे उसकी सतरंगी किरणों ने बेगम के लरजते कंठ में अपना आसरा तलाशा. मौका भी, मुराद भी और दस्तूर भी. सो मल्हार का सरगम राग और बंदिश में कुछ ऐसा उमड़ा कि बादल और बौछारों के मुख्तलिफ़ अहसासों से अंतरंग तरबतर हो गया. बहुकला केंद्र भारत भवन में हर बरस ‘बादल राग’ मौसम के माथे पर ऐसा ही सुरीला तिलक करता है.

चार दिनी जलसे का आगाज़ करने आई थीं मौसिकी की मलिका हिन्दुस्तान ही नहीं, दुनिया के लाखों संगीत प्रेमी उन्हें बेगम परवीन सुल्ताना के नाम से पहचानते हैं. वही परवीन, जिन्हें भारत सरकार ने उम्र की पच्चीसवीं पादान पर पांव रखने से पहले ही पद्म पुरस्कार देकर शास्त्रीय संगीत के संसार में हलचल मचा दी थी. लेकिन बेगम ने कम उम्र में मिले इस तोहफे का मान रखा. तालीम, रियाज और तहजीब से गहरे ताल्लुकात टूटने न दिए. गुरू-उस्तादों की सीखों का मान रखा. शोहरत और कामयाबियां बुलंदियां छूने लगीं. बेगम के करिश्माई गले ने ये साबित किया कि रूह से उठें जो सुर तो वे इबादत बन जाते हैं.

यकीनन उस महफिल में भी बेगम की लहराती तानों ने ऐसा ही तिलिस्म रचा. बकौल उन्हीं के, “मेरे लिए संगीत ही सब कुछ है. मैं हर चुनौती को यहां स्वीकार करने तैयार हूँ. मेरा जवाब संगीत ही है.” वही हुआ भी जब बेगम ने पुरूष गायकों में प्रचलित राग मिया मल्हार को अपने स्त्री कंठ के लिए चुना. लेकिन मुकुंद राजदेव के तबले और श्रीनिवास आचार्य के हारमोनियम की संगत में यह राग आसानी से अपने आरोह-अवरोह में रसिकों से हमजोली करता रहा.

बेगम परवीन सुल्ताना मौजूदा दौर की एक ऐसी बेमिसाल फनकार हैं जिन्होंने विरासत के संगीत से अपना नाता जोड़कर दुनिया भर में उसे आसमानी पहचान बख़्शी है. अभ्यास और अनुशासन उनकी पूंजी है. मीठा कंठ, तार सप्तकों तक पहुंचता सुर और आध्यात्मिक गहराईयों को छूती उनकी गायिकी का असर कुछ ऐसा है कि रूह में घुलता संगीत इबादत में बदल जाता है. बिला शक, हमारे संगीत संगम की नायिका हैं परवीन सुल्ताना. भारत के पूर्वोत्तर प्रदेश आसाम के डेकेपट्टी गांव में जन्म हुआ. बुनियादी तालीम अपने वालिद और पहले गुरु गायक और रबाब वादक इकरामुल माजिद के सख़्त अनुशासन में हुई. बेगम परवीन अपनी ज़मीनी सीखों के साथ कोलकाता गई और हिन्दुस्तानी संगीत के प्रकांंड गान अध्येता पंडित चिन्मय लहिड़ी की छत्रछाया में रहकर गायन की तकनीक और उसके व्यावहारिक पहलुओं का मार्गदर्शन प्राप्त किया. 1973 में पटियाला घराने के उस्ताद दिलशाद खान का सानिध्य पाया.

बेगम की शोहरत और कामयाबी से जुड़े अनेक दिलचस्प पहलू है. मसलन महज बारह साल की उम्र में ये कोलकाता में अपनी पहली सार्वजनिक प्रस्तुति से श्रोताओं की चाहत में शुमार हो गईं और पंद्रह बरस की आयु में अपने गायन के पहले रिकार्ड के जरिए उनकी आवाज तमाम सरहदें पार कर देश-दुनिया में फैल गई. पद्म पुरस्कार को बहुत कम उम्र में पा लेने का गौरव तो है ही, इनसे इतर गंधर्व कलानिधि, तानसेन सम्मान, संगीत नाटक अकादेमी सम्मान, आसाम सरकार के संगीत साम्राज्ञी सम्मान, श्रीमंत शंकर देव सम्मान और एम.टी.वी. अवॉर्ड से भी परवीन को विभूषित किया जा चुका है.

ख्याल ठुमरी और भजन सहित अनेक विधाओं को अपनी कंठ-माधुरी में आत्मसात करने वाली बेगम परवीन के गायन के एच.एम.व्ही. म्यूजिक इंडिया, ऑविडीज, मेग्नासाउण्ड, सोनोडिस्क सहित कई म्यूजि़क कंपनियों ने रिकार्ड्स जारी किए हैं.

बहरहाल, बेगम इस शाम बेहद प्रसन्न मन से भोपाल के श्रोताओं से पेश आईं. पहले तो मंच से दूर बैठे रसिकों को उन्होंने और करीब सिमट आने का आग्रह किया. फिर उस गुजि़श्ता दौर को याद किया जब एक महामारी की आपदा ने सबको दूर कर दिया था. उन्होंने कहा भी कि ‘उपर वाले’ का करम है कि हम फिर इस तरह एक महफि़ल में आमने-सामने हैं. जिसके पास डर नहीं है, मालिक उनकी रक्षा करता है. परवीन सुल्ताना ने इस बात को लक्ष्य किया कि उन्हें सुनने बड़ी तादाद में नौजवान भी मौजूद हैं. उनसे मुखातिब बेगम ने नसीहत भी दी कि तालीम की अहमियत तो हम सबकी जि़ंदगी में है ही लेकिन तहजीब अगर हमारे पास नहीं है तो तालीम का कोई मायना नहीं है. उन्होंने जोड़ा कि भोपाल के श्रोताओं को संगीत की न केवल समझ है बल्कि संगीत सुनने का सलीक़ा भी उनके पास है. कहती हैं कि भारत भवन आना सदा ही उन्हें सुकून देता है. यह मेरा दूसरा घर है.

इसी आत्मीय नातेदारी के चलते जब श्रोताओं ने फि़ल्म ‘क़ुदरत’ में गाए उनके गीत ‘हमें तुमसे प्यार कितना’ गाने की गुहार की तो बेगम साहिबा ने उनकी मुराद खाली न जाने दी. तराना छेड़ने से पहले वो कि़स्सा भी सुनाया कि कैसे उन्हें इस गीत को गाने का प्रस्ताव संगीतकार आर.डी. बर्मन से मिला और किस तरह किशोर कुमार की आवाज़ में इस गीत की रिकार्डिंग हो जाने के बाद इसका फीमेल वर्शन भी शामिल किया गया. फिर किशोर कुमार बेगम परवीन सुल्ताना की आवाज पर किस तरह फि़दा हुए!

बातों के सिलसिले में बेगम ने बताया कि वे फि़ल्म इंडस्ट्री से जरा दूर ही रहना चाहती थी लेकिन मदन मोहन, जयदेव, एस.डी. बर्मन और पंचम जैसे बेहद काबिल, गुणी और प्रयोगधर्मी संगीतकारों की वजह से एक दौर तक सिने संगीत से जुड़ी रहीं. तब वे युवा थीं और ऐसे तमाम संगीतकार उनसे बेहद प्यार करते थे. परवीन ने थोड़ा अफ़सोस के साथ कहा कि अब न तो वैसे संगीतकार फि़ल्म इंडस्ट्री में हैं और न वैसी जगह वहां दिखाई देती है कि मुझ जैसे क्लासिकल सिंगर की आवाज़ की कोई कद्र करे. लेकिन दुनिया भर के मंच और महफि़लों को रोशन कर चुकी परवीन सुल्ताना ने पचहत्तर पार की उम्र उम्र और हौंसले के बीच जो सुरीला संतुलन बनाया है वो हिन्दुस्तानी संगीत की कसौटी बन गया है.

 

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