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अभिनय मेरी मुक्ति का स्वप्न : रंगकर्मी आलोक चटर्जी से विनय उपाध्याय की रंगवार्ता

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   अभिनय मेरी मुक्ति का स्वप्न रंगकर्मी आलोक चटर्जी से विनय उपाध्याय की रंगवार्ता विनय उपाध्यायः आपको कब लगा कि आपके भीतर एक अभिनेता है जो रंगमंच पर जाना चाहता है? आलोक चटर्जी: मेरा जन्म दमोह में हुआ है। माँ मेरी रबीन्द्रनाथ टैगोर के बेटे से संगीत सीखती थी देहरादून में। पिताजी ग्वालियर मुरैना शिवपुरी में शेक्सपियर के नाटक अंग्रेजी में करते थे, जब पढ़ते थे। तो ज़ाहिर है कि मुझे कुछ चीज़ें विरासत में जेनेटिकली मिल गयीं। तो मैं जब 5 वर्ष का था तो दुर्गा पूजा के अवसर पर रबीन्द्रनाथ टैगोर की कविता प्रार्थना मेरी माँ ने मुझे याद कराके दुर्गा अष्टमी के दिन मंच पर खड़ा कर दिया कि इसका पाठ करो। तो मंच पर मेरा पहला पदार्पण कविता के माध्यम से हुआ। दुर्गा अष्टमी के दिन पर हुआ और माँ के द्वारा हुआ। उसी साल फिर स्कूल में 'भारत माता' नाटक में डॉक्टर का रोल मिला जिसमें एक ही डायलॉग था- "मेरे देश के रोगी जनों का इलाज कौन करेगा? माँ, मैं करूँगा, मैं करूँगा। तो उसके साथ शुरू हो गया। लगभग पचपन- छप्पन साल हो गए इस बात को। चल रहा है सिलसिला। बचपन में इस तरह का एक अलग कौतूहल होता है कि मंच पर जाए...

नदी से माँगी माँ की बेटी हूँ - शारदा सिन्हा

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  नदी से माँगी माँ की बेटी हूँ  शारदा सिन्हा सरस्वती उनके पूरे व्यक्तित्व में बोलती थी। वे लोक की चिंताओं में गहरी डूबी हुई थीं। वे भोजपुरी की अनन्य गायिका थीं जिन्होंने अपने अंचल की पूरी देशज परंपरा को अपनी स्मृति और कंठ में बचाकर रखा है। एचएमव्ही जैसी नामी कंपनी ने 'मैथिली कोकिला' नाम से एक कैसेट के ज़रिए इस नवोदित गायिका को पहचान के नए पंख दिए। लेखा-जोखा उठाकर देखें तो शारदाजी के खाते में सौ से ज़्यादा सीडी अलबम, कैसेट्स और हज़ार से ज़्यादा देश-विदेश में हुए सफल संगीत समारोहों की उपलब्धियाँ हैं। फ़िल्मों के लिए भी वे लोकगीत गाती रहीं। राष्ट्रपति ने उन्हें पद्मश्री और पद्मभूषण से अलंकृत किया। संगीत नाटक अकादेमी नई दिल्ली और लखनऊ की 'सोन चिरैया' लोक संस्था ने पुरस्कृत कर उनकी लोक धर्मी कला का मान बढ़ाया। भारत के जनपदीय लोक कंठ की मधुरिमा का दुनिया भर में सुरीला विस्तार करने वाली बिहार की जनप्रिय गायिका शारदा सिन्हा के निधन पर टैगोर विश्व कला एवं संस्कृति केन्द्र आरएनटीयू भोपाल की हार्दिक संवेदना...श्रद्धांजलि । शारदाजी की स्मृतियों को साझा करती, रंग संवाद में प्रकाशित अ...

बहार बेचैन है उसकी धुन पर : अश्विनी कुमार दुबे

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  बहार बेचैन है उसकी धुन पर अश्विनी कुमार दुबे  जब छोटे थे शंकरदास और दिन खिलौने से खेलने के थे तब परिवार भीषण ग़रीबी से गुजर रहा था। खिलौने कहाँ से आते ? तब शैलेन्द्र की माँ ने नदी , पहाड़ , पेड़ , फूल , चाँद और तारों से परिचय कराते हुए कहा था- ‘बेटा , ये हैं तेरे खिलौने। तू इनसे खेल। इनसे अपना मन बहला। ' यहाँ से शैलेन्द्र के मन में राग पैदा हुआ प्रकृति के प्रति। वे अपनी माँ के इसलिए भी जीवन भर ऋणी रहे कि सबसे पहले उसी ने उन्हें प्रकृति से प्रेम करना सिखलाया। बचपन उनका इन्हीं खिलौनों के साथ बीता। जैसे बच्चों को अपने खिलौने बेहद प्यारे होते हैं। वे उन्हें सीने से लगाए रहते हैं। ऐसे ही बचपन से प्रकृति से प्यार करते आए शंकरदास यानी गीतकार शैलेन्द्र। युवा अवस्था में मथुरा में पले-बढ़े। यहाँ ब्रजभूमि से उनका परिचय हुआ। वृन्दावन , गोकुल और बरसाने जाकर वहाँ का प्राकृतिक सौन्दर्य उन्होंने देखा और अभिभूत हुए। यहीं रहते हुए उन्होंने कृष्ण काव्य भी पढ़ा और उसका महत्व समझा। जमुना का किनारा , बंशीवट , कुंज-कुरील , कदम्ब के फूल , मधुवन और गौचरण के दृश्य उन्होंने देखे और सुदूर अतीत में यह...

बादलों का मौसम और वो सुरभीनी शाम - विनय उपाध्याय

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  बादलों का मौसम और वो सुरभीनी शाम विनय उपाध्याय  ये भादों की भीगी-सी शाम थी. पानीदार बादलों से आच्छादित आसमान पर जब यकायक इंद्रधनुष खिल उठा तो जैसे उसकी सतरंगी किरणों ने बेगम के लरजते कंठ में अपना आसरा तलाशा. मौका भी , मुराद भी और दस्तूर भी. सो मल्हार का सरगम राग और बंदिश में कुछ ऐसा उमड़ा कि बादल और बौछारों के मुख्तलिफ़ अहसासों से अंतरंग तरबतर हो गया. बहुकला केंद्र भारत भवन में हर बरस ‘बादल राग’ मौसम के माथे पर ऐसा ही सुरीला तिलक करता है. चार दिनी जलसे का आगाज़ करने आई थीं मौसिकी की मलिका हिन्दुस्तान ही नहीं , दुनिया के लाखों संगीत प्रेमी उन्हें बेगम परवीन सुल्ताना के नाम से पहचानते हैं. वही परवीन , जिन्हें भारत सरकार ने उम्र की पच्चीसवीं पादान पर पांव रखने से पहले ही पद्म पुरस्कार देकर शास्त्रीय संगीत के संसार में हलचल मचा दी थी. लेकिन बेगम ने कम उम्र में मिले इस तोहफे का मान रखा. तालीम , रियाज और तहजीब से गहरे ताल्लुकात टूटने न दिए. गुरू-उस्तादों की सीखों का मान रखा. शोहरत और कामयाबियां बुलंदियां छूने लगीं. बेगम के करिश्माई गले ने ये साबित किया कि रूह से उठें जो सुर तो व...