बहार बेचैन है उसकी धुन पर : अश्विनी कुमार दुबे
बहार बेचैन है उसकी धुन पर अश्विनी कुमार दुबे जब छोटे थे शंकरदास और दिन खिलौने से खेलने के थे तब परिवार भीषण ग़रीबी से गुजर रहा था। खिलौने कहाँ से आते ? तब शैलेन्द्र की माँ ने नदी , पहाड़ , पेड़ , फूल , चाँद और तारों से परिचय कराते हुए कहा था- ‘बेटा , ये हैं तेरे खिलौने। तू इनसे खेल। इनसे अपना मन बहला। ' यहाँ से शैलेन्द्र के मन में राग पैदा हुआ प्रकृति के प्रति। वे अपनी माँ के इसलिए भी जीवन भर ऋणी रहे कि सबसे पहले उसी ने उन्हें प्रकृति से प्रेम करना सिखलाया। बचपन उनका इन्हीं खिलौनों के साथ बीता। जैसे बच्चों को अपने खिलौने बेहद प्यारे होते हैं। वे उन्हें सीने से लगाए रहते हैं। ऐसे ही बचपन से प्रकृति से प्यार करते आए शंकरदास यानी गीतकार शैलेन्द्र। युवा अवस्था में मथुरा में पले-बढ़े। यहाँ ब्रजभूमि से उनका परिचय हुआ। वृन्दावन , गोकुल और बरसाने जाकर वहाँ का प्राकृतिक सौन्दर्य उन्होंने देखा और अभिभूत हुए। यहीं रहते हुए उन्होंने कृष्ण काव्य भी पढ़ा और उसका महत्व समझा। जमुना का किनारा , बंशीवट , कुंज-कुरील , कदम्ब के फूल , मधुवन और गौचरण के दृश्य उन्होंने देखे और सुदूर अतीत में यहीं खे